Sunday, April 29, 2012

हमारी क्या ग़लती, कुसूर तुम्हारा है!

नींद कितनी निकम्मी है,
सपनों से कब की हार चुकी !
यादों मे खोने की आदत सी हो गयी |
दिल पे हमारे जो कब्जा किसीका
बता अब इसमे ,
हमारी क्या ग़लती !


Mute से रहे हम जमाने की  full volume  मे ,
'Not responding'  बताए  heart  का  'task manager'  ये |
Short circuit  दिमाग़ का, तबीयत की हो  tragedy
Equilibrium  की लग जाए, जब  emotions  लिखे parody ..
देवदास नही हम, पर  senti  बाते करने मे  Ph.D. मिली है ..
तूही बता है यहाँ ,
हमारी क्या ग़लती !


पतझड़ की धूप खिली है चारो मौसम काटो मे ,
कब नज़ाने छींटे उड़ाएंगे फूलों के झरने |
राहों मे नज़रे बिछाए नज़ारें राह तक रहे है |
Rewind - Play  कर करके  flashback  भी ज़ुबानी याद हो गया अब तो ,
सच मान लो ,
कुसूर तुम्हारा है !


बादलों से उपर पहुँचती ख़यालों की सीढ़ी किसने बनाई ?
खुदसे भी प्यारी लगे, है ये कितनी मासूम तहाई !
हमारी बेवजह सी मुस्कुराहट उन गानों का नही, तुम्हारा असर है |
नज़र हट कैसे जाए, जब किसी सूरत के हुक्म मे दिल झुका है |
कसम से कहु ,
कुसूर तुम्हारा है !


कितना मनाया, पर गद्दार साली दिल की फ़ितरत हमारी एक ना माने !
हक भी तो नही रहा हमारा , कमीनी चीज़ जो अब तुम्हारी है |
हम तो बस तेरी ही खुशी की सोचते है उल्लू ,
ऐसा आशिक़ इशाक़ज़ादा तू कही गवा न जाए ..
तूही बता इसमे ,
हमारी क्या ग़लती !

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